रविवार, 13 फ़रवरी 2011

हर एक चीज़ वही हो जो है - फैज़ अहमद 'फैज़'


फैज़ अहमद 'फैज़' का नाम हर किसी के लिए इतना जाना पहचाना है कि उनके बारे में कुछ कहना.... 
कुछ कहने की ज़रूरत भी क्या है। बस आज उनके जन्मदिन पर उन्हीं की एक नज़्म से उन्हें याद कर लिया जाए... 


तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी कि जो है
आसमां हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय, राह-गुज़र, रंग-ए-फ़लक
रंग है दिल का मेरे "ख़ून-ए-जिगर होने तक"
चम्पई रंग कभी, राहत-ए-दीदार का रंग
सुरमई रंग के है सा'अत-ए-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, ख़स-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख़ फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू-रंग, शब-ए-तार का रंग

आसमां, राह-गुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना है
अब जो आये हो तो ठहरो के कोई रंग, कोई रुत, कोई शय
एक जगह पर ठहरे

फिर से एक बार हर एक चीज़ वही हो जो है
आसमां हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय |